रविवार, 16 अक्तूबर 2016

"एक आदमी...बासठ रुपया!!!"

"एक आदमी.... सत्तावन रुपया!!!"

'तृप्ति डाईनिंग हॉल' के वेटर की, अपने पूर्ण वाल्यूम पर की गई घोषणा से, पूरा हॉल गूंज उठा। हॉल में बैठे अन्य ग्राहक चौंक पड़े। सारे के सारे, चित्रलिखित से, आंखों में विस्मय के भाव लिये, मुझे घूर रहे थे। उनकी आंखों में, 'यह कौन बकासुर है यार?', के भाव किसी को भी शर्मिंदा करने को पर्याप्त थे।  मैं, चुपचाप, नज़रें चुराता हुआ, बिल पे करने हेतु गल्ले की ओर बढ़ लिया।

यह 1985 की बात है। औरंगाबाद, महंगा शहर था। सैलरी होते ही दो-एक बार मैं यहाँ खा लेना अफोर्ड कर लेता था। पूरे महीने, मेस का नीरस खाना खाने के बाद, यहाँ का लज़ीज खाना खा, 'तृप्ति' का अनुभव होता। सामान्यतः बीस-बाईस रुपयों में मस्त खाना हो जाता। उस डाईनिंग हॉल का वेटर, खाने का हिसाब रखता और गल्ले पर बैठे अपने मालिक को चिल्ला कर बिल की राशि बताया करता। मैंने कई बार उससे कहा कि 'अपना' बिल चिल्लाया मत कर! उसके अपने प्रैक्टीकल प्राबलेम्स थे, वह नहीं सुनता। मैं मन ही मन, 'हरामखोर', कह अपनी भड़ास निकाल लिया करता।

ऐसे ही एक दिन मैंने वहाँ खाना खाया, मस्त टहलते-टहलते गुलमंडी पहुंचा, अपने मनपसंद 'कराची पान सेंटर' पर पान खा, गजराज की भांति झूमते हुए रात दस के करीब अपने रूम पर पहुंचा, तो देखा पिताजी आए हुए हैं। रूम पर ताला पड़ा देख बाहर रखी कुर्सी पर बैठे मेरी राह देख रहे हैं।

"थे कदे आया? (आप कब आए?)"

"वो सब छोड़....मुझे बडे जोरों की भूख लगी है। पहले भोजन करवा दे!"

चिंता की बात न थी। पर्स भरा हुआ था.....मैंने कहा;

"चलिए, पहले आपको भोजन करवा लाता हूँ!!",

API में कार्यरत मेरे रूममेट, Shashikant Shastri, अपने घर परभणी गए हुये थे। उनकी नई बाइक पर उन्हें ले आया मैं अपने मनपसंद स्थान, 'तृप्ति डाईनिंग हॉल' पर। आखिर वे पिता थे मेरे.... पांच परौंठे, गट्टे का साग, बैंगन की भाजी, दाल, दही और पापड़...भूखे हो गए थे, भरपेट खाया। मैं सारा समय कौतुक से देखता रहा उन्हें। वे खाते हुए तारीफ़ भी कर रहे थे, खाने की। उनके चेहरे पर संपूर्ण 'तृप्ति' के भाव देख, दिल को सुकून मिल रहा था मेरे।

"एक आदमी..... बासठ रुपया!!!", ललकार सुनते ही पिताजी चौंक पडे.....

"अबे, बडा महंगा खाना है यहाँ तो....", वे कह रहे थे।

"आपको मज़ा आया न....बस तो फिर!!", मैंने कहा।

मित्रों, जुलाई में पुत्र के विवाह का भोजन बडा स्वादिष्ट था। मेहमान तृप्त होकर, तारीफ़ें करते गए। कैटरिंग का लंबा-चौड़ा बिल अदा किया मैंने....पर सच कहता हूँ, बासठ रुपयों का बिल अदा करते हुए जो संतुष्टि मिली थी न, उसकी कोई सानी नहीं!!!

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